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पतंग से / सत्यनारायण सोनी

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बड़ी बड़भागी हो पतंग!
कितने नन्हे-मुन्नों की आँखें
चिपकी हैं
तुम्हारे बदन से
प्यारी-प्यारी
मासूम
निश्छल आँखें।

उड़ते हुए
आसमान में
इन्हीं आँखों
निहारती हो तुम
धरती का
मुलायम-मखमली रूप,
बिखेरती हो
अपनी मनोहर मुस्कान
जो समा जाती है
धरती के कण-कण में
खिल उठता है उसका
रोम-रोम।

देखो,
मैं भी तो
उलझ गया हूँ
तुम्हारी मुस्कान में
और दे बैठा
अपनी आँखें,
लौटाओ तो तुम्हारी मर्जी।

2005