भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मंगलाचरण / सूरदास
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:18, 9 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} चरन-कमल बंदौं हरि-राइ ।<br> जाकी कृपा पंगु गिरि ...)
चरन-कमल बंदौं हरि-राइ ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अँधे कों सब कछु दरसाइ ।
बहिरौ सुनै, गूँग पुनि बोलै ,रंक चलै सिर छत्र धराइ ।
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तिहिं पाइ ॥1॥