भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसी रात / अनिरुद्ध उमट
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:25, 22 जनवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध उमट |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ब...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
बरसों तक न सींचा
कीड़ी नगरा
इतना कि कभी-कभी
ख़ुद को
सींचता-सा लगा
मैं नींद की मौत
नहीं मरना चाहता
किया था आर्तनाद
स्वप्न में ख़ुद को
मरते देख
बिला नागा धर्म यह
घर कर गया
मुझ में
एक ही दिन सींच न पाया
उसी रात स्वप्न में
मुझे सींचने आ गईं
सारी चींटियाँ
शब्दार्थ :
(कीड़ी नगरा : चींटियों की बाँबियाँ)