भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लगातार / अरुण कमल

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:03, 13 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण कमल }} लगातार बारिश हो रही है लगातार तार-तार<br> कही...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लगातार बारिश हो रही है लगातार तार-तार
कहीं घन नहीं न गगन बस बारिश एक धार
भींग रहे तरुवर तट धान के खेत मिट्टी दीवार
बाँस के पुल लकश मीनार स्तूप
बारिश लगातार भुवन में भरी ज्यों हवा ज्यों धूप

कोई बरामदे में बैठी चाय पी रही है पाँव पर पाँव धर
सोखती है हवा अदरक की गंध
मेरी भींगी बरौनियाँ उठती हैं और सोचता हूँ
देखूँ और कितना जल सोखता है मेरा शरीर
तुम इंद्रधनुष हो|