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साहित्य / ‘हरिऔध’

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भाव गगन के लिए परम कमनीय कलाधर।
रस उपवन के लिए कुसुम कुल विपुल मनोहर।
उक्ति अवनि के लिए सलिल सुरसरि का प्यारा।
ज्ञान नयन के लिए ज्योतिमय उज्ज्वल तारा।
है जन मन मोहन के लिए मधुमय मधुऋतु से न कम।
संसार सरोवर के लिए है साहित्य सरोज सम।1।

जाति जीवनी शक्ति देश दुख जड़ी सजीवन।
जीवन हीन अनेक जीवितों का नवजीवन।
बुधा जन का सर्वस्व अबुधा जन बोधा विधाता।
निर्जीवों का जीव सजीवों का सुख दाता।
है घनीभूत तम-पुंज में लोकोत्तार आलोक वह।
है लौकिक विविधा विधान का सकल अलौकिक ओक वह।2।

उसमें सरस वसंत सब समय है सरसाता।
सब ऋतु में है मंद मंद मलयज बह जाता।
है कोकिल कमनीय कंठ सब काल सुनाता।
विकसित सरसीरुह समूह है सदा दिखाता।
कर कर अनुपम अठखेलियाँ हैं जन मानस मोहती।
हैं कलित ललित लतिका सकल सब दिन उसमें सोहती।3।

भवनों को जो बालभाव हैं स्वर्ग बनाते।
श्रुति में जो कल कथन हैं सुधा सोत बहाते।
कामिनी कुल की कला कान्ति कोमलता न्यारी।
बहुउदार चित्त वृत्ति विकच कलिका सी प्यारी।
नाना विलास लीला विविध हाव भाव अनुभाव सब।
उसमें विकसित हो लसित हो करते नहीं प्रफुल्ल कब।4।

है अरूप आलाप को रुचिर-रूप बनाता।
बोल चाल को परम अलंकृत है कर पाता।
रसना जनित उक्ति को रसिकता है देता।
कल्पलता है विविध कल्पना को कर लेता।
बहु अललित भाव समूह में भर देता लालित्य है।
नीरस विचार को भी सरस कर देता साहित्य है।5।

बड़े बडे क़वि अमर कीर्तियाँ कैसे पाते।
जीवित कैसे विपुल अजीवित जन कहलाते।
क्यों दिगन्त में सुयश सुयशवाले फैलाते।
कैसे गुण गुणवान जनों के गाये जाते।
इतिहास विदित वसुधाधिपति नाम सुनाता क्यों कहीं।
साहित्य सुधा से अमरता जो उनको मिलती नहीं।6।

मधुर मधुर धवनिसहित धवनित कर मानव मानस।
बहा बहा कर अमित अन्तरों में नव नव रस।
बहु विमुग्धाता बितर बितर स्वर लहरी द्वारा।
सिक्त बना कर सरस राग से भूतल सारा।
भर भुवन विमोहन भाव सब परम रुचिर पद-पुंज में।
बजती है प्रतिभा मुरलिका नित साहित्य निकुंज में।7।

साथ लिये अनुकूल कलामय कामिनी का दल।
गान वाद्य पटु राग रंग रत मानव मंडल।
धर्म प्रचारक विबुधावृन्द बहु उन्नत चेता।
धीर वीर धीमान धाराधिप नाना नेता।
अति अनुपम अभिनेता बने करते अभिनय हैं जहाँ।
है भूतल में साहित्य सा रंगमंच सुन्दर कहाँ।8।

वह विधान जो है विधान वालों का साधन।
वह विवेक जो है विवेकमय मानस का धन।
वह सुनीति जो नीतिमान की है रुचि न्यारी।
पूत प्रीति वह, प्रीतिमान की जो है प्यारी।
भव में भव हितकर अन्य जो वर विचार वरणीय हैं।
वे सब साहित्य समुद्र के रत्न निकर रमणीय हैं।9।

स्वर व्यंजन आकलित अखिल पद है अवलम्बन।
रुचिकर रुचिर विचारमयी रचना है मण्डन।
अतुल विभव है भाव उक्ति सरसा है सम्बल।
है वर बुध्दि प्रसूत प्रखर प्रतिभा समधिक बल।
संसार सार साहित्य का रस सहजात निजस्व है।
कविता है जीवन सहचरी कवि जीवन सर्वस्व है।10।