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जीवन-काँवर / प्रतिभा सक्सेना

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भौतिकता और चेतना के दो घटवाली जीवन-काँवर,
लेकर आता है जीव, श्वास की त्रिगुण डोर में अटका कर,

हर बार नये ही निर्धारण, काँवरिये की यात्रा के पथ
चक्रिल राहों पर भरमाता, देता फिर बरस-बरस भाँवर .

घट में धारण कर लिया आस्था-विश्वासों का संचित जल
अर्पित कर महाकाल को फिर, चल देता अपने नियतस्थल!

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