भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महेश बाणी / चन्दा झा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:29, 1 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्दा झा |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} {{KKCatMaithiliRachna...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फिरलहुँ देश विदेश हे शिव
दुख धन्धा मध नबजन व्याकुल केओ नहि रहित कलेश।।
जठरानल कारण जन हलचल, देखल नाना वेष।
साधु असाधु हृदय भरि पूरल, केवल लोभ प्रवेश।।
अपने अपन मन मलिन न जानथि, अनका कर उपदेश।
क्रोध प्रचंड बोध परिशुद्ध न, नहि मन ज्ञानक लेश।।
टूटल दशन वदन छविओ नहि, सन सन भए गेल केश।।
कह कवि चन्द्र अपन बुतें किछु नहि, मालिक एक महेश।