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बस्ता / विशाल श्रीवास्तव

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बस्ता

बस्ते में बच्चे रख रहे हैं ताज़ा उगी सुबह की धूप का टुकड़ा जैसे वे अपनी किताबों को किसी अदृश्य ऍंधेरे से बचाना चाहते हैं वैसे, किताबों के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी है बस्ते के पास उसे ही पता है किताबों में छपे हर अक्षर का सही-सही वजन बस्ता सबसे ज्यादा नजदीक होता है किताबों की गम्भीर ऊष्मा के वही पहचानता है ठीक-ठीक पीठ के पसीने और बांसी कागज़ की मिली-जुली विशिष्ट गन्ध उसी ने सबसे ज्यादा बचाया है साहित्य को गीला कर देने वाली बारिश और तेज धूप से तुलसी, शेक्सपियर और मिल्टन को लगभग एक साथ बस्ते को ही सबसे अधिक चिंता है नाजुक पीठ और मासूम दिमाग पर पड़ रहे बोझ की

हम यहाँ बैठे इतने जटिल रूपक तलाश रहे हैं उधर बहुत खुश है बस्ता बच्चे उसके अन्दर रंगीन पत्थर, कंचे और काग़ज़ के हवाई जहाज रख रहे हैं वे उसे एक संग्रहालय बनाने की कोशिश में हैं।