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दुख नहीं है के जल रहा हूँ मैं / फ़ैसल अजमी
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दुख नहीं है के जल रहा हूँ मैं
रौशनी में बदल रहा हूँ मैं
टूटता है तो टूट जाने दो
आइने से निकल रहा हूँ मैं
रिज़्क़ मिलता है कितनी मुश्किल से
जैसे पत्थर में पल रहा हूँ मैं
हर ख़जाने को मार दी ठोकर
और अब हाथ मल रहा हूँ मैं
ख़ौफ ग़र्काब हो गया ‘फैसल’
अब समंदर पे चल रहा हूँ मैं