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सूना आकाश / प्रांजल धर
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जब भी देखा है शिराय लिली को
उखरूल याद आ गया है
छोटे-से हृदय के भीतर मानो
माजुली समा गया है ।
लोहित, सरमती, मानस, काजीरंगा
हाथी, बाघ, गैंडे और कमीज़ की बाईं बाँह पर बैठा
पूर्वोत्तर का लाचार पतंगा !
बैकाल के ओल्खोन से कम नहीं है
न ही ‘महानायक’ के सुपीरियर या
मिशिगन वाले ‘ग्रेट लेक्स’ के गीत से
न ही किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के
स्वर्णिम अतीत से !
न ही होलीफ़ील्ड-टायसन की कुश्ती से
और न ही
माइकल जैक्सन या गोरी नायिकाओं के
कानफोड़ू संगीत से !
तेजू के पास का परशुराम कुण्ड
संतरे, अनन्नास और ताम्बुल के पेड़
ह्वेनसांग के चबूतरे पर सुन्दर पक्षियों का
मनमोहक झुण्ड ।
ब्रह्मपुत्र और बराक की घाटियों में
महसूस की है एक भयंकर प्यास -–
इतना सूना भी नहीं रहा करता था ये आकाश !