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बुज़ुर्गो ने जो छोड़ा था असासा चल रहा है / शहबाज़ 'नदीम' ज़ियाई

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बुज़ुर्गो ने जो छोड़ा था असासा चल रहा है
पुरानी साख पर अपना क़बीला चल रहा है

है सीने में मुसलसल धड़कनों का शोर बरपा
हमारे दिल पे ये किस का इजारा चल रहा है

हमारी रीढ़ की हड्डी में गूदा है अभी तक
हमारे जिस्म का इक एक पुर्ज़ा चल रहा है

नहीं है मेरे सर पर दोस्तों महर-ए-तपीदा
मगर फिर भी मिरे साथ एक साया चल रहा है

तमन्ना है न कोई आरज़ू ज़िंदा सलामत
मगर दिल है इरादा बे-इरादा चल रहा है

अभी तक गर्दिशें महव-ए-तवाफ़-ए-ज़िंदगी हैं
अभी तक मेरी क़िस्मत का सितारा चल रहा है

अभी तक साँसें सरगर्म-ए-सफ़र रहती हैं मुझ में
अभी तक मेरी हस्ती का गुज़ारा चल रहा है

किसी चश्म-ए-तिलिस्म-आसार की ज़द में है शायद
मिरा दिल आजकल मुझ से कशीदा चल रहा है

हैं दुनिया-ए-सुख़न में और भी उस्ताद लेकिन
जनाब-ए-दाग़ का ‘शहबाज़’ सिक्का चल रहा है