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नीला संसार / सविता सिंह

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अभी थोड़ा अंधेरा है

भाषा में भी सन्नाटा है अभी

अभी बिखरे पड़े हैं रेशम के सारे धागे

सपनों के नीले संसार में ऎंठे

अभी कुछ भी व्यवस्थित नहीं

कविता भी नहीं


मैं चल रही हूँ लेकिन इसी अंधेरे में

जागी चुपचाप समझती

कि जो नीले रेशमी डोरे तैर रहे हैं

और जो भाषा सन्न है मेरी ही चुप से

वह सब कुछ मेरा ही है

एक परखनली मेरे अंधकार की

एक गहरी नीली खाई मेरे होने की


अभी थोड़ा अंधेरा है

और मैं चल रही हूँ लिए नींद बग़ल में