भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बापू / कलक्टर सिंह ‘केसरी’
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:27, 29 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कलक्टर सिंह ‘केसरी’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कइसे मानीं हम जोत चान-सूरुज के उतरल माटी में ?
कइसे मानीं भगवान समा गइलन मानुस के काठी में ?
जर गइल फिरंगिनि के लंका, बाजलि आजादी के डंका,
अइसन अगिया बैताल जगवलन कइसे एक लुकाठी में ?
कइसे मानी हम बापू के परगास नजर से दूर भइल ?
अबहूँ बाड़न ऊ आसमान के चमचमात जोन्हीं अइसन !
जे भूल गइल बापू के उनका खातिर घुप्प अन्हरिया बा।
जे उनुकर नीति निबहले बा उनुका खातिर दुपहरिया बा।
जेकरा भीतर के आँख रही, ऊ बापू के अबहूँ देखी।
जे आन्हर बा उनुका खातिर त परबत बनल देहरिया बा।
हम समुझत बानीं मौत खेल ह, एगो आँखमिचौनी सन।
बापू रहलन इंसान बात ई लागत अनहोनी अइसन।