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धृतराष्ट्री जिनगी / पाण्डेय सुरेन्द्र
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हमार बा अमावस के रात अइसन जिनगी
जेमें हमार प्रान घोंघा अइसन टकटोर-टकटोर के चलेला
आ हमार धृतराष्ट्री कुल-मर्यादा बाँध देबेला
मन गांधारी के निमनो आँख पर पट्टी
चारो ओर फइल गइल बा कुचकुच अन्हरिया
जेमें दुनिया के महाभारत हम देख ना सकीं
खाली सुनीले
आ अपना सोना के सिंहासन से
आउर कस के चिपकीले
ई सिंहासन सोना के ह, इहो हमार सुनले ह,
हमार देखल-बूझल ना ह
काहे कि हमरा त असली आ लोहो के भीम में
कुछुओ फरक ना बुझाला