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दुःख !/ कन्हैया लाल सेठिया
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दुख,
सिंघणी रो दूध
ईं नै चाहीजै
सोनै रो गौवणियूं
तिड़कज्या काचा पिंड
ओ पारो
जांतो रह
टळक टळक‘र
आंसूड़ां में !