भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गांव !/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:02, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण
ईं काणती कमेड़ी रो आळो
जाटै बास रैं पींपळ पर है,
आ गंजली कागली
गेली परली
नीमड़ी पर ब्यायोड़ी है,
ओ झींपरियों गंडक
लीलगरां री ढ़ाणी रो है,
हीरू कुमार री बैड़की
काल टोगड़ी ल्याई है
टाबरां जोगी धार हुगी,
रात मोती बळाईं रै घरां
जागण हो
आछी मनवार खातर करी,
ऐ खोज तो मानदासजी रा है
सुधियां ही कुनैं निसरग्या ?
छोरां, भूतियै खेजड़े रा खोखा
चोखा कोनी
ना खाईज्यो, उलाकता फिरोला,
सोहन माळी री सांढ
अबार बिराईज‘र मरगी
गरीब नै हांडी हेटै करगी,
ओळखाणं‘र संवेदणा रो नांव
गांव जठै आतमा परमातमा !