भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:35, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण
हुग्या सागै
दिखाणै वास्तै
रात नै गेलो
अणगिणत तारा,
पण मजल रै बारै में
सगलां रा मता
न्यारा न्यारा,
पजग्यो गतागम में
बापड़ो अंधेरो
सोच‘र आप रो
चनरमा
उतरग्यो मूंडो
भाज छूटया
चोदू रा भीड़ी
देख‘र हूंती
सूरज री उगाली !