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सवाल / कन्हैया लाल सेठिया
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किंया मिली
तनैं
मिनख री जूण ?
क्यूं कोनी बण्यो
कीडी‘र मकोड़ो
माखी‘र माछर
कांईं ओ जाबक संजोग ?
का ईण लारै कोई जोग ?
आयो के कणाईं
मन में
ओ सवाल ?
सुणीज्यो के
मांय नै स्यूं
कोई पडूत्तर ?
कोनी चिंत सकै
आ बात जिनावर
जकां रो
सहज बोध
प्रजनन‘र उदर,
दीन्ही
तनैं कुदरत
आ खिमता,
पण तू
थकां दीठ
हू‘र आंधो
भाजै तिसणां रै लारै
कोनी करै विचार
कांईं सार कांई असार ?
गमगी मन रै अंधेरै में
अंतस री चेतणा
गिटगी वासणा
हियै री संवेदणा,
कठै गई स्याणप ?
तू साव भोळियो
मान लियो निज नै
जाबक हाड‘र मांस रो
खोळियो,
ओ थारो अभाग
पण तू जाग
उठ परमाद त्याग
खिंडया पैली
पंचभूत रो मेळो
सुण
जीव रै बैरी
काळ रो हैलो !