भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोटी / शिवदान सिंह जोलावास
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:05, 18 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदान सिंह जोलावास |संग्रह= }} [[Categor...' के साथ नया पन्ना बनाया)
चूल्है रा ताप मांय
पिघळ रैयी है चांदणी।
पूरी गरमी साथै
तवा माथै इतरावै है
गोळ-गोळ सूरज।