भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तहखानों तक / हरकीरत हकीर

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:21, 26 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} {{KKCatNazm}} <poem>कोई ठंडी हवा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई ठंडी हवा का झोंका
आधी रात मेरे लहू में
अक्षर - अक्षर हो …
लिख जाता है किताब
कभी तो आ …
दिल के तहखानों तक
जिसकी टूटी सतरें जोड़
कोई नज़्म बना सकें …