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आज फिर / अलीना इतरत

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मैं आज फिर
बंद पल्कों के उस पार
चाँदनी को सुलगता देख रही हूँ
मेरा जिस्म बर्फ़ की मानिंद सर्द है
मगर साँस आग बरसा रही है
और शायद
बर्फ़ हुए जिस्म में
ज्वाला-मुखी सुलगता रहेगा
हमेशा