भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोटी / गौरीशंकर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:35, 23 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौरीशंकर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatRajasthaniRa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
म्हारो चूल्हो होयग्यो
सैचन्नण
वा रोटी पोई
म्हैं सैकूं,
-खीरां माथै रोटी फुलाओ!
रोटी फूलै।
देख! आपणो प्यार फूलग्यो।
वा आपरी छाती कानी देखै
अर हांसै।