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अणचिन्ती / कन्हैया लाल सेठिया
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बादळियै री
छांटां
डूंगर परां पड़ी’र
तिसळगी
डरी’र सोच्यो मरगी
पण गुड़ती गुड़ती
नीचै आ’र
आपस में रळगी’र
समदर कांनी भागती
नदी बणगी !