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बात / कन्हैया लाल सेठिया
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जलमतां ही छोड़’र
बाप मन नै
जामण जीभ नै
चाल पड़ै बिन्यां मांडया खोज
बा बात,
बी रै भवूं एकसी
तावडी र छयां
लू’र डांफर
चालै दिन’र रात
बा बात
लांघै जकी समन्दर सात
मारै हिमालै रै लात
फिरै जका आडा
ख्ंिाडादै बांरी खात
बा बात !
नही बीं नै साच स्यूं हेज
नहीं झूठ स्यूं परहेज
न कोई जकी रै जात
न कोई न्यात
बा बात,
जावै कानां मांयकर
बीं रो गेलो
कोनी जाणै बास
पड़ै ढबणो
जठै मिनख गूंगा
अठै आतां खावै जकी मात
बा बात !