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कृपा निधान / अश्वनी शर्मा

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बड़ी-बड़ी चिंताएं लेकर
सिर जोड़कर
चिंतन कर रहे हैं
बड़े-बड़े लोग
बड़े-बड़े बुद्धिजीवी कर रहे है
हाहाकारी क्रन्दन
चिंतित है वो चिली, सोमलिया
वियतनाम, इजरायल, अमेरिका
या पटाया, के लिये भी

मैंने नहीं सुने ये सारे नाम
मेरी जिंदगी में
कोई फर्क भी नहीं अगर
मैं नहीं जानता ये नाम
मेरी चिंता है
किसी को फुर्सत क्यों नहीं
कि
फोग, खींप, बुई
कहां चले गये
देशी बाजरे, मूंग मोठ के बीज
अब मिलते क्यों नहीं
भेड़ को चराने की जगह कहां से लाऊं
ऊंटनी ने बच्चे देने कम क्यों कर दिये
मेरी सफेद बड़ें सींगों वाली गौरी
की जगह
ये सुअर-सी दिखाई देने वाली
अमेरिकन जर्सी गाय कहां से आई
मैंने जो ताजा मक्खन खाया
वो मैं अपने बेटे को क्यों नहीं दे पाता
मेरे घर में हारे में
सौंधी सुगंध के साथ
सारे दिन उबलने वाला दूध
सुबह सवेरे डेयरी की गाड़ी में
शहर की यात्रा पर क्यों चल देता है
मेरी समस्त चिंताओं, सरोकारों को
लेकर मेरे समस्त पक्षधर
या तो विदेश यात्रा पर निकल जायेंगे
या विश्वविद्यालय से अपने नाम
के आगे डॉक्टर की तख्ती लगवा लेंगे
या फिर बैठ जायेंगे किसी बड़ी कुर्सी पर
तब उनके वातानुकूलित कक्ष से निकालकर
मैं दिखाने लाऊंगा
कि मैं मजबूर होकर तरबूज में
सैक्रीन का
और घीया में
ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन क्यों
लगाता हूं।