भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैसेज / किरण राजपुरोहित ‘नितिला’
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:34, 14 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण राजपुरोहित ‘नितिला’ |संग्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
पौरवां सूं कैयी
बातां री ताण पकड़ वो
आय ज्यावै इण तीर
खोलूं
करूं जतन
अर सांवट खुद नैं
मेलूं उण तीर
इण मनगत रा छांटा मांय
पछै भींजता रैवै
म्हारा दिन-रात।