भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साँचा:KKPoemOfTheWeek
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:23, 13 फ़रवरी 2014 का अवतरण
दर्द की रात ढल चली है
रचनाकार: फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
बात बस से निकल चली है
दिल की हालत सँभल चली है
अब जुनूँ हद से बढ़ चला है
अब तबीअत बहल चली है
अश्क ख़ूँनाब हो चले हैं
ग़म की रंगत बदल चली है
लाख पैग़ाम हो गये हैं
जब सबा इक पल चली है
जाओ, अब सो रहो सितारो
दर्द की रात ढल चली है
जुनूँ=दीवानगी;
अश्क=आँसू;
ख़ूँनाब=लहू के रंग