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ज़र्रे-ज़र्रे में मुहब्बत भर रही है / नवीन सी. चतुर्वेदी
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ज़र्रे-ज़र्रे में मुहब्बत भर रही है
क्या नज़र है और क्या जादूगरी है
हम तो ख़ुशबू के दीवाने हैं बिरादर
जो नहीं दिखती वही तो ज़िन्दगी है
किस क़दर उलझा दिया है बन्दगी ने
उस को पाऊँ तो इबादत छूटती है
ये अँधेरे ढूँढ ही लेते हैं मुझ को
इन की आँखों में ग़ज़ब की रौशनी है
एक दिन मैं आँसुओं को पी गया था
आज तक दिल में तरावट हो रही है
पहले चेहरे पर कहाँ थी ऐसी राहत
ये सजावट तो तुम्हारे बाद की है
प्यार के पट खोल कर देखा तो जाना
दिल हिमालय, ख़ामुशी गंगा नदी है
अपनी मिलकीयत किसी को क्या बताऊँ
एक वीराना है एक दीवानगी है