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अभिनय / निज़ार क़ब्बानी

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दूसरों के सामने मैं कहता हूँ कि तुम मेरी प्रिय नहीं हो
और भीतर गहरे कहीं मैं जानता हूँ कि मैं कितना झूठा हूँ
केवल मुश्किलों को हमसे दूर रखने के लिए
दावा करता हूँ कि कुछ नहीं है हमारे बीच
और मीठी होते हुए भी,
मैं नकार देता हूँ प्यार की अफ़वाहों को
और अपने सुन्दर इतिहास को खण्डहर कर देता हूँ ।

मूर्खों कि तरह, मैं स्वयं को निर्दोष घोषित करता हूँ
अपनी इच्छाओं को मार डालता हूँ, साधु बन जाता हूँ
अपनी सुगन्ध मिटा देता हूँ, जान-बूझ कर
तुम्हारी आँखों-बसे स्वर्ग से भाग जाता हूँ
मसखरी करता हूँ, उस भूमिका में
असफल हो जाता हूँ मेरी प्यारी और लौट आता हूँ
क्योंकि रात, चाहे कितना भी चाहे,
अपने तारे नहीं छुपा सकती,
न ही समुद्र, चाहे जितना भी चाहे,
छुपा सकता है अपने जहाज़ ।