भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आना तुम कभी / निवेदिता

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:49, 21 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निवेदिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीली आंखों में यादों के कुछ बादल उमड़े हैं
भीगा-भीगा मन याद करता है
शफ्फाक दिन
बसंत की ढेर सारी हरी पत्तियां

दिल का परींदा उड़ जाता है
हंसती आंखों में ख्वाब लिए
सड़कों पर फिरते वे दिन याद है

रातों में मीठी नदियों सा बहना
एक देह का नदी में उतरना
और गुलमोहर सा खिल जाना याद है
धूप का शाखों पर गिरना
किसी किताब से निकलकर शब्दों का
बह जाना

एक भीगी सुबह और अंतहीन विस्मृति
बेचैन चुम्बनों के साथ
तुम्हें विदा करना याद है.