भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जरूरी चीज़ें / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:59, 22 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
धावकों के पांवों के उँगलियों के बीच
उगी 'फफूंद'
जरूरी है
जीत जितनी ही
लोकतन्त्र के लिए सफेदपोश 'मसखरे'
जरूरी है
जीवन के लिए
हवा-आग-पानी में बजबजाते 'अणु'
प्रेम के लिये स्नेह में पंगी 'आत्मा'
लोहे का लहू सटकने के लिए जंग की लपलपाती 'जीभ'
जरुरी है बंद अलमारी में जमी 'धूल'
सुरक्षित आस्थाओं के लिये
पसीने की गंध
'देह की पहचान' के लिये
जिस तरह जरूरी है कतरे के लिए जरूरी है 'आंख'
उसी तरह जरूरी है मिटटी की सेहत के लिए 'नमी'
पर अंतिम घड़ी तक यह तय नहीं हो पाया है
कितनी जरूरी हूं 'मैं'
तुम्हारे लिए