भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आत्म-निवेदन / पुष्पिता

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:03, 25 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे भीतर
छूट गया है
तुम्हारी आँखों का लिखा
चाहतों का पत्र
फड़फड़ाता बेचैन
तुम्हारी आँखों की तरह।

तुम्हारी पलकों की बरौनियाँ
मुझमें लिखती हैं
स्मृतियों के गहरे सुख
अन 'जी' आकांक्षाओं की प्यास।

मेरे भीतर
शेष है
तुम्हारे प्रणयालिंगन की
स्मरणीय छुअन
उस परिधि के भीतर
समाकर
घुल जाती हूँ स्नेह में
और बन जाती हूँ नेह-सरिता।

तुम्हारी परछाईं में
मिल जाती है मेरी परछाईं
एकालोप।