भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनंग पुष्प / पुष्पिता

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:05, 25 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम
प्रेम का शब्द हो
विदेह प्रणय की
सुकोमल देह
अनंग पुष्प की
साकार सुगंध।
अनुभूति का अभिव्यक्त रूप
अजस्र उष्म अमृत-कुंड
जिसमें नहाती और तपती है देह
प्रणय की ज्वालामुखी आँच में
लावा के सुख को जानने के लिए।
अपनी ही सांसों की
हिमानी हवाओं में
बर्फ होती हुई
स्मृतियों के स्वप्न से
पिघलती है
अपनी ही तृषा-तृप्ति के लिए
पीती हूँ अपनी ही देह का पिघलाव
तुम्हारे सामने न होने पर
दर्द से जन्मे
आँसुओं को
दर्द से जिया है।
प्रतीक्षा की आग के ताप को
आँसू
चुप नदी की तरह पीती है
प्रतीक्षा के प्रवाह में
टूटी लकीरें तोड़ती हैं
संवेदनाओं का साहस।