भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नीली स्याही / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:42, 1 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नीली स्याही में
भीगे हुए हैं
कितने रंग के दुःख
कितनी उदासी-टूटन-हताशा,
पीड़ा और प्रेम
नीली स्याही में है
गुंजायमान
(जिसका कि सिर्फ़ नीला रंग नहीं है)

पंक्तित इस नीलाभ में
शामिल है
कितने तरह की चीज़ों की आवाज़
और चुप्पी

आख़िर
नीला ही कितना बचा होगा
नीली स्याही में
जब उड़-सिकुड़ रही हो रंगत
जीवन से लगातार