भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इक्यासी / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:10, 4 जुलाई 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थे हूंता तो
-दादू!
लादू-पादू नीं चरता भाखा रो खेत
कदैई तो चेतो करती भळभळाती रेत

कदैई तो धरती री कूख मांय
सूरज इण ढब आंख खोलतो
कै कूड़ कपट अर साच-झूठ नैं
-पूरो-पूरो तोलतो।

पण :
बीं रा पगलिया तो बांधगी
मां बीं री धाय कळायण

अबै खेलतो फिरै भलांई
इत्तै मोटै आंगणै अेकलो
बीं नैं कांई ठा
पाछो आय ऊभो है लार्ड मैकलो।

(स्व. जनकवि श्री हरीश भादाणी नैं याद करतां थकां)