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सम्बोधन दो / रमेश रंजक

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                 स्वर्ण -धनुष टूट गया
मधुर मिलन को, अब कोई और नया
                       सम्बोधन दो...

धूम्र-लहर निगल गई रंग-तरी
आँगन में छपरी तक सुधि बिखरी
लतिका ने झाँप लिया वातायन को
                     सम्बोधन दो...

मुरझा गई बतियाती डाल हरी
घर-बाहर अनबोली घुटन भरी
अँकवारो छन्द भरे अभिनन्दन को
                     सम्बोधन दो...