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चुनाव / शहनाज़ इमरानी

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खेतों के साथ चलते हुए
रातो-रात मैदान बन जाते हैं
सड़कें दौड़ने लगती हैं
कुछ जाँबाज़ लफ़्ज़ छलाँग लगाते हैं
और ख़बर के सबसे सियाह पहलू को
नए बने शहर के सामने लाते हैं
जब मानी का सबसे मुश्किल नुक़ता आता है
लोग फिसल कर जल्लाद के साथ हो लेते हैं
जो राजनीति के बारे में कुछ नहीं जानता
वो ही तो नेता बन जाता है
चुनाव जीतना दहशतगर्दी का लाइसेंस मिल जाने जैसा है
देशवासियों को खाना नसीब नहीं
और वो पार्टी के बाद का खाना ट्रकों में भर कर फेंकते है
बे घर लोग बदन पर चीथड़े
खाली पेट सरकारी अस्पतालों के फ़र्श पर
बिना दवा इलाज के दम तोड़ते रहते हैं
ख़ून, बलात्कार, हिंसा, अन्याय, अत्याचार, कट्टरवाद
मेरे देश में आज भी राष्ट्र से पहले धर्म आता है !
अणु-परमाणु से चल कर
न्यूट्रोन-प्रोटोन तक पहुँची
इस चरम सभ्यता की ज़िन्दगी में
प्रजा पीछे छूट गई और तन्त्र बुलेट-प्रूफ़ कारों में आगे निकल गया ।