भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जितनी : उतनी / ज्ञानेन्द्रपति
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:42, 30 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञानेन्द्रपति |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)
दिवस-छोरों पर
जितनी उषाएँ हैं
उतनी संध्याएँ हैं --
मनस-कोरों पर भी