भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऎसे में / भारत यायावर

Kavita Kosh से
Linaniaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 14:52, 1 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत यायावर |संग्रह=मैं हूँ, यहाँ हूँ / भारत यायावर }} कि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कितना अजीब है

संस्मरण हो जाना

अपने ही जीवन का


कितना अजीब है

अपने से इतना दूर चले आना


धूल से अँटा हुआ

खेलता हुआ

जाड़ों में गिल्ली-डंडा

शाम को

तोते की तरह रटता पहाड़ा

वह मैं हूँ

वह मैं नहीं हूँ

बीते हुए बचपन के सिवा


एक लझड़िया साइकिल

और झोलाधारी एक सवार

कितने घरों में जाकर

ट्यूशन पढ़ाता हुआ

अपने कमाए हुए पैसों के लिए

महीनों गिड़गिड़ाता हुआ

घिसी चप्पलों में

जाता हुआ कालेज

वह मैं हूँ

वह मैं नहीं हूँ

आज, कल के सिवा


आज

खड़ा हूँ जहाँ

लोगों से जुड़ी एक कविता है

जो इस थकान से भरी ज़िन्दगी को

करती रही है संघर्षोन्मुख


ऎसे में

कितना शुक्रगुज़ार हूँ मैं

कविता तुम्हारा !