भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अकथ / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:29, 24 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कथ कथ’र
हुग्यो आखतो
कोनी कथीज्यो
अकथ !
खिण में लागै
जाणै
बांध लियो
आभै नै
रामधणख
पण
फरूकतां ही
आंख
टूट ज्यावै
दीठ रो भरम,
अंतस में
बैठो है एक
अबोळो मरम
कोनी पकड़ै
जको
म्हारी अकन कुंआरी
वेदणा रो हाथ
गीला है
जकी रै आंसुवां स्यूं
म्हारा नैण,
गळगच है
गीतां स्यूं
म्हारा कंठ !