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भिक्षुक दुख / केदारनाथ अग्रवाल

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मैंने सोख लिए हैं

और पिए हैं

बेला औ' चम्पा गुलाब के

डब-डब आँसू,

मौलसिरी के

छल-छल आँसू,

जैसे सूरज पी लेता है

हरी घास के लक-दक आँसू !

मेरा दुख

भिक्षुक है मेरा ;

वह जो लेता है

देता हूँ ;

जाता है जब

तब मैं उससे

आने का

वादा लेता हूँ