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तुम्हें / केदारनाथ अग्रवाल

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सिन्धु की सीमांत गहरी

साँस लेती नीलिमा को

हेमहासी तप्तश्वासी सूर्य का आलोक जैसे

प्रेम-पालित पुष्प-पूरित आकुलित उर से लगाए

और तन्मय हो

सुरंगों की तरंगों में झुलाए

मैं तुम्हें वैसे तुम्हारी पूर्णिमा के साथ पाऊँ

और वैसे ही विवसना वासना की पूर्णिमा में

आम बौरों से सुगन्धित आकुलित उर से लगाऊँ

रूप की, रस की, सुरंगों की तरंगों में झुलाऊँ ।