भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चानीके रूपैया / चन्द्रमणि

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:51, 21 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रमणि |संग्रह=रहिजो हमरे गाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोन बेदर्दी चोराय लेलक दइया।
खोंइछामे धएने छलौं चानीके रूपइया।
नइहरमे अरजल धन रखलौं जोगाकऽ
सासुरमे अबिते से लऽ गेल चोराकऽ
चौल करय ननदि आ‘ देयर कसइया।।
खोंइछा.....

छलियै जुआन मुदा दुलहनि नवेली
चोरि भेलै पहिले दिन ससुरक हवेली
कोन आंखि गरलै जे भेलै बलइया।।
खोंइछा

मिसियो भरि दोख नहि केलियै गे संगी
जकरे भरोस केलौं निकलल दूरंगी
हंसि-हंसिकऽ धएलक से कोमल कलइया।।
खोंइछा...

ई कोन पिरीत रीत दै छै जे सोग
ककरो जोगाएल धन दोसर के भोग
पिया निनबासरिमे लूढ़ल रूपइया।।
खोंइछा