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आओ / मोहन आलोक

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आओ।
कीं भेळा हुवां
संकड़ां

साप हां
ऊंदरै रै बिल में बड़ा।
बैवंती सड़क है
सहर है
लोगां री भीड़़ है
बड़ी
कीं रै ई पगतळै
दब ज्यावै नीं पूंछड़ी
सांवटां
ख्यांत राखां
क्यूं हुवां सिरां-धड़ां।
मूंडै में जहर है
उगळां क्यूं
यूं करां
जणां गा’ली भरै
कुलै
भाठां रै बटका भरां
का
पड्या-पड्या आप रै ई
मुड़-मुड़ लड़ां।
आओ।
कीं भेळा हुवां
संकड़ां
सांप हां
ऊंदरै रै बिल में बड़ां ।