भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वह / रामदरश मिश्र
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:44, 8 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदरश मिश्र |संग्रह=दिन एक नदी ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बजबजाती हवाओं के बीच
कच्ची दीवार की टूटी छाया
उसके तले
उसी तरह बैठा हुआ वह....
उसके साथ एक कुत्ता, एक बकरी
और उसका साया।
सामने के राजमार्ग से
बार-बार गुजरते
हाथी-घोड़ों के जुलूस की
वह जय बोलता है।