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पचास साल / रामकृष्ण पांडेय
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यह देखो
मैं पचास साल का हो गया
पचास साल पुरानी हो गई
यह दुनिया मेरे लिए
ऐसा लगता है
ख़त्म नहीं हुआ है
अभी इसका अन्धकार-युग
आज भी मनुष्य
रेंगता है पृथ्वी के वक्ष पर
घुटनों के बल
चौतरफ़ा आक्रमणों से क्षत-विक्षत
मौक़ा मिलते ही
दूसरों पर झपट पड़ने को विवश
अभी-अभी ही तो हुआ था
वह महाविस्फोट
फिर शुरू हुई ज़िन्दगी की हलचल
कि कालचक्र पूरा हो गया
यह देखो
मैं पचास साल का हो गया