भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक इन्टरव्यू / स्नेहमयी चौधरी

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:04, 13 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्नेहमयी चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने बच्चे को नहलाती
खाना पकाती
कपड़े धोती
औरत से पूछा
‘सुना तुमने पैंतीस साल हो गए
देश को आज़ाद हुए?’
उसने कहा ‘अच्छा’...
फिर ‘पैंतीस साल’ दोहराकर
आंगन बुहारने लगी
दफ़्तर जाती हुई बैग लटकाए
बस की भीड़ में खड़ी औरत से
यही बात मैंने कही
उसने उत्तर दिया
‘तभी तो रोज़ दौड़ती-भागती
दफ़्तर जाती हूं मुझे क्या मालूम नहीं!’
राशन-सब्जी और मिट्टी के तेल का पीपा लिए
बाज़ार से आती औरत से
मैंने फिर वही प्रश्न पूछा
उसने कहा ‘पर हमारे भाग में कहां!’
फिर मुझे शर्म आई
आखि़रकार मैंने अपने से ही पूछा
‘पैतींस साल आज़ादी के...
मेरे हिस्से में क्या आया?’
उत्तर मैं जो दे सकती थी,
वह था...