भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाशिये पर / पूर्णिमा वर्मन
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:15, 14 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूर्णिमा वर्मन |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पन्ने पर लिखा
खास कब होता है?
खास सब कुछ होता है हाशिये पर
जैसे परीक्षा के अंक
गलतियों पर टिप्पणियां
प्रशंसा के शब्द
शिक्षक के हस्ताक्षर
हाशिये पर कम लिखा बहुत होता है
हाशियों पर नहीं होते वाद-विवाद
हाशिये में नहीं भरी जा सकती बकवाद
हाशिये पर लिखा तुरंत नज़र आता है
वह बनाता है पन्ना लिखने वाले का जीवन
वह निखारता है उनका व्यक्तित्व
वह रचता है उनका भविष्य
हाशिया हर कागज का सौंदर्य है
वह सादे पन्ने में रंग भरता है
नियंत्रित करता है उसके विस्तार को दिशाओं में
वही बनाता है इतिहास
याद रखता है महत्वपूर्ण तिथियां
कौन कहता है औरत हाशिये पर है
हाशिये पर जो भी होता है वह खास होता है!