भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम दोनों / अलका सिन्हा

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:27, 16 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अलका सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम दोनों ही
जिन्दगी के संघर्ष में
जूझते रहे
पूरी निष्ठा के साथ

तुमने भी फतह कर डाले
कितने ही किले
मैंने भी हासिल कीं
कितनी ही उपलब्धियां
फिर भी एक बुनियादी फर्क
बना रहा हम दोनों के बीच

तुम्हें अच्छी लगती है
अखबार खोल कर
चाय की चुस्कियों के साथ
राजनीति और राजनेता पर
धुआंधार बहस...

बहस तो मैं भी कर सकती हूं
बहुत अच्छी
मगर नहीं करती
क्योंकि इस सारे संघर्ष के बीच भी
मैं चिंतित रही हूं
बच्चों की पढ़ाई और इम्तहान को लेकर
बढ़ते बच्चों की सोहबत और टी.वी. प्रोग्राम में
उनकी बढ़ती दिलचस्पी को लेकर

सोचती हूं
क्यों न हम थोड़ा-थोड़ा-सा बदल जाएं
बांट लें एक दूसरे को
वैसे भी प्रिय
एक रथ के ही हम पहिये हैं दो
आओ मिल कर साथ चलें!