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मन / संजय पुरोहित
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मन
जिस दिन
उतार देगा
अघोरी कैंचूली
तर चुका होगा
साधु से पथ को
संत से सत को
जिस दिन
रह जायेगा
फकत
एक भिक्षुक
उस दिन..
उस दिन प्रिये !
आउंगा तेरी चौखट
क्षण भर के लिये
बस
निहार लेना मुझे
मिलन के अंतिम सिरे तक फिर
करना तर्पण
आंचल से भर
एक मुटठी
नेह की भीख
करना विदा
असीम क्षितिज
के निर्लिप्त पथ
की ओर
मोक्ष की ड्योढी की ओर